देहरादून। बाहय स्वरूप में देखते हैं तो खुशी कहाँ से मिलेगी? बाहर ढ़ूढ़ना चालू करते हैं और उसका शिकार हो जाते हैं, अधीन हो जाते हैं। बाहर खुशी ढ़ूढ़ने का प्रयत्न किया, बाहर से खुशी मिलेगी? इसी लिए महात्माओं ने कहा खुशी बाहर नहीं अन्दर है। शान्ति बाहर नहीं अन्दर है। जो हमारे भीतर की शक्ति है उसे बाहर लाना है। प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्थानीय सेवाकेन्द्र सुभाषनगर में आयोजित सत्संग में प्रवचन करते हुए राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी मंजू बहन ने सकारात्मक सोच के बारे में बताया। कहते है कि सकारात्मक सोच केवल सलाह देने तक है हम दूसरों को बहुत अच्छी सलाह दे सकते हैं लेकिन खुद के लिए वह लागू नही होती। हम पर भी वह लागू होनी चाहिए यह हम महसूस नहीं कर पा रहे हैं।
जब हम बाहय प्रभाव के आधीन हो जाते हैं उसके गुलाम हो जाते हैं तब हमें खुशी मिलती नहीं बल्कि हमारी खुशी गायब हो जाती है, इसलिए आधीनता कभी भी खुशी का अनुभव नहीं कराती है और उसके कारण सबसे बड़ा नुक्सान जो होता है कि हम अपना सेल्फ रेस्पेक्ट खत्म कर देते हैं और उसके आधीन हो गये, इसीलिए दूसरों से रेस्पेक्ट माँगना पड़ता है। रेस्पेक्ट नहीं मिलता तो मूड खराब हो जाता है। उन्होंने कहा रेस्पेक्ट कोई माँगने की चीज़ नहीं होती, रेस्पेक्ट प्राप्त करने की चीज़ होती है। आप अस्तित्व में स्थित रहो, आधीनता में नहीं आओ फिर देखो आपको कैसे मिलती है। इगो और आत्म सम्मान में बहुत कम मार्जिन है। आप को रेस्पेक्ट चाहिए तो आप रेस्पेक्ट दो। राजयोग का अभ्यास हरेक को सम्मानित जीवन प्रदान करता है।
सकारात्मक सोच केवल सलाह देने तक है खुद के लिए वह लागू क्यों नहीं करते